Wednesday, February 26, 2020

राजकुमार : संवाद अदायगी के बेताज बादशाह






संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कुलभूषण पंडित उर्फ राजकुमार का नाम फिल्म जगत की आकाशगंगा में ऐसे ध्रुव तारे की तरह है कि उनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फिल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा।

राजकुमार का जन्म पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 8 अक्टूबर 1926 को एक मध्यमवर्गीय कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजकुमार मुंबई के माहिम पुलिस स्टेशन में बतौर सब इंस्पेक्टर काम करने लगे।

राजकुमार मुंबई के जिस थाने में कार्यरत थे, वहाँ अक्सर फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार पुलिस स्टेशन में फिल्म निर्माता कुछ जरूरी काम के लिए आए हुए थे और वे राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने राजकुमार को यह सलाह दी कि अगर आप फिल्म अभिनेता बनने की ओर कदम रखें तो उसमें काफी सफल हो सकते हैं।

राजकुमार को फिल्म निर्माता की बात काफी अच्छी लगी। इसके कुछ समय बाद राजकुमार ने नौकरी छोड़ दी और फिल्मों में बतौर अभिनेता बनने की ओर रुख कर लिया।

वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘रंगीली’ में सबसे पहले बतौर अभिनेता राजकुमार को काम करने का मौका मिला। वर्ष 1952 से 1957 तक राजकुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे।

फिल्म ‘रंगीली’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वे उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने अनमोल सहारा, अवसर, घमंड, नीलमणि जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।

वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ में राजकुमार गाँव के एक किसान की छोटी-सी भूमिका में दिखाई दिए। हालाँकि यह फिल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी, फिर भी राजकुमार इस छोटी-सी भूमिका में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे।

इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और फिल्म की सफलता के बाद राजकुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।

वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म ‘पैगाम’ में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे, लेकिन राजकुमार अपनी सशक्त भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे।

Rajkumar
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इसके बाद राजकुमार दिल अपना और प्रीत पराई, घराना, गोदान, दिल एक मंदिर जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गए जहाँ वे फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे।

वर्ष 1965 में बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘वक्त’ में राजकुमार का बोला गया एक संवाद ‘चिनाय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते’ या फिर ‘चिनाय सेठ, ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज नहीं है, हाथ कट जाए तो खून निकल आता है’ दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।

फिल्म ‘वक्त’ की कामयाबी से राजकुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुँचे, लेकिन राजकुमार कभी भी किसी खास इमेज में नहीं बँधे। इसलिए अपनी इन फिल्मों की कामयाबी के बाद भी उन्होंने हमराज, नीलकमल, मेरे हूजूर, हीर रांझा में रूमानी भूमिका भी स्वीकार की, जो उनके फिल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी। इसके बावजूद राजकुमार दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहें।

‘पाकीजा’ में राजकुमार का बोला गया संवाद ‘आपके पाँव देखे, बहुत हसीन हैं, इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा मैले हो जाएँगे’ इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे-बगाहे राजकुमार की आवाज की नकल करने लगे।

वर्ष 1978 में प्रदर्शित फिल्म ‘कर्मयोगी’ में राजकुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिए राजकुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। राजकुमार अपने डायलाग के दम पर आज तक दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं।

इस क्रम में वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘बुलंदी’ में वे चरित्र भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके और इस फिल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का मन मोहे रखा।

इसके बाद राजकुमार ने कुदरत, धर्मकाँटा, शरारा, राजतिलक, मरते दम तक, जंगबाज जैसी कई सुपरहिट फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिल पर राज किया।

वर्ष 1991 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौदागर’ में दिलीप कुमार और राजकुमार फिल्म ‘पैगाम’ के बाद दूसरी बार आमने-सामने थे। दिलीप कुमार और राजकुमार जैसे अभिनय की दुनिया के महारथियों का टकराव देखने लायक था। नब्बे के दशक में राजकुमार ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया।

नितांत अकेले रहने वाले राजकुमार ने शायद यह महसूस कर लिया था कि मौत उनके काफी करीब है, इसीलिए अपने पुत्र पुरू राजकुमार को उन्होंने अपने पास बुलाया और कहा, ‘देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फिल्म उद्योग को सूचित करना।’

साभार वेवदुनिया


1 comment:

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